माँ ब्रह्मचारिणी पूजा विधि | Maa Brahmacharini Puja Vidhi

माँ ब्रह्मचारिणी पूजा विधि | Maa Brahmacharini Puja Vidhi

🙏 आरती संग्रह 🙏




माँ ब्रह्मचारिणी पूजा विधि | Maa Brahmacharini Puja Vidhi

माँ ब्रह्मचारिणी पूजा विधि | Maa Brahmacharini Puja Vidhi

॥ नवरात्रि के दूसरे दिन (माँ ब्रह्मचारिणी पूजा विधि) ॥

दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी पूजा की आराधना की जाती है । इन्हें मिश्री और पंचामृत का भोग लगाना उत्तम माना गया है । ऐसे में आप मां को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और चीनी का मिश्रण) अर्पित कर सकते हैं ।

॥ स्नान: ॥

ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें.

॥ स्थान: ॥

पूजा स्थल पर माँ ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें.

॥ संकल्प: ॥

देवी से मनोकामना पूर्ति के लिए संकल्प लें.

॥ पंचामृत स्नान: ॥

देवी को पंचामृत से स्नान कराएं, फिर रोली, अक्षत, चंदन आदि अर्पित करें.

॥ भोग: ॥

शक्कर से बनी मिठाई, बर्फी या पंचामृत का भोग लगाएं.

॥ आरती: ॥

आरती: घी और कपूर से दीपक जलाकर माँ की आरती करें.

॥ कथा पाठ: ॥

दुर्गा सप्तशती या दुर्गा चालीसा का पाठ कर सकते हैं.

॥ विवरण ॥

कूष्माण्डा स्वरूप धारण करने के उपरान्त देवी पार्वती ने दक्ष प्रजापति के घर जन्म लिया । देवी पार्वती अपने इस अवतार में एक महान सती थीं तथा उनके अविवाहित रूप को देवी ब्रह्मचारिणी के रूप में पूजा जाता है । मान्यताओं के अनुसार, समस्त सौभाग्य के दाता मंगल भगवान को देवी ब्रह्मचारिणी द्वारा शासित किया जाता है । देवी ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने हेतु कठोर तपस्या की थी । उनकी कठोर तपस्या के कारण, उन्हें ब्रह्मचारिणी के नाम से सम्बोधित किया गया है । देवी ब्रह्मचारिणी को पादुकाहीन चरणों से चलते हुये दर्शाया गया है । उनकी दो भुजायें हैं । वह दाहिने हाथ में जप माला एवं बायें हाथ में कमण्डलु धारण करती हैं । पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी ब्रह्मचारिणी ने इसीलिये आत्मदाह कर लिया था ताकि, वह अपने अगले जन्म में उन्हें ऐसे पिता प्राप्त हों, जो उनके पति भगवान शिव का सम्मान कर सकें ।

॥ प्रिय पुष्प ॥

चमेली ॥

॥ मन्त्र ॥

ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः ॥

॥ मुख्य बीज मंत्र ॥

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम: ॥

॥ प्रार्थना ॥

दधाना कर पद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू ।

देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥

॥ स्तुति ॥

या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता ।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥

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॥ ध्यानम् ॥

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् ।

जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम् ॥


गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम् ।

धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालङ्कार भूषिताम् ॥


परम वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन ।

पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम् ॥

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॥ स्तोत्रम् ॥

तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम् ।

ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम् ॥


शङ्करप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी ।

शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम् ॥

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॥ कवचम् ॥

त्रिपुरा में हृदयम् पातु ललाटे पातु शङ्करभामिनी ।

अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो ॥


पञ्चदशी कण्ठे पातु मध्यदेशे पातु महेश्वरी ॥


षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो ।

अङ्ग प्रत्यङ्ग सतत पातु ब्रह्मचारिणी ।

॥ आरती ॥

जय अम्बे ब्रह्मचारिणी माता । जय चतुरानन प्रिय सुख दाता ॥

ब्रह्मा जी के मन भाती हो । ज्ञान सभी को सिखलाती हो ॥


ब्रह्म मन्त्र है जाप तुम्हारा । जिसको जपे सरल संसारा ॥

जय गायत्री वेद की माता । जो जन जिस दिन तुम्हें ध्याता ॥


कमी कोई रहने ना पाये । कोई भी दुःख सहने न पाये ॥

उसकी विरति रहे ठिकाने । जो तेरी महिमा को जाने ॥


रद्रक्षा की माला ले कर । जपे जो मन्त्र श्रद्धा दे कर ॥

आलस छोड़ करे गुणगाना । माँ तुम उसको सुख पहुँचाना ॥


ब्रह्मचारिणी तेरो नाम । पूर्ण करो सब मेरे काम ॥

भक्त तेरे चरणों का पुजार ी। रखना लाज मेरी महतारी ॥

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