माँ चन्द्रघण्टा पूजा विधि | Maa Chandraghanta Puja Vidhi

माँ चन्द्रघण्टा पूजा विधि | Maa Chandraghanta Puja Vidhi

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माँ चन्द्रघण्टा पूजा विधि | Maa Chandraghanta Puja Vidhi

माँ चन्द्रघण्टा पूजा विधि | Devi Chandraghanta Puja Vidhi

॥ नवरात्रि के तीसरे दिन (माँ चन्द्रघण्टा पूजा विधि) ॥

तीसरे दिन माँ चन्द्रघण्टा पूजा-उपासना की आराधना की जाती है । माँ चन्द्रघण्टा को दूध या दूध से बनी मिठाई जैसे - खीर या बर्फी का भोग लगा सकते हैं ।

॥ स्नान और वस्त्र धारण: ॥

ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें.

॥ स्थान की शुद्धि: ॥

पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें.

॥ संकल्प: ॥

देवी से मनोकामना पूर्ति के लिए संकल्प लें.

॥ मूर्ति स्थापना: ॥

मां चंद्रघंटा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें.

॥ गंगाजल स्नान: ॥

मां की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएं.

॥ सामग्री अर्पित करें: ॥

रोली, चंदन, अक्षत, सिंदूर, धूप, दीप, पुष्प और इत्र अर्पित करें.

॥ भोग लगाएं: ॥

मां को खीर, दूध से बनी मिठाई या शहद का भोग लगाएं.

॥ मंत्र जप: ॥

मां चंद्रघंटा के मंत्रों का जाप करें.

॥ दुर्गा चालीसा/आरती: ॥

दुर्गा चालीसा का पाठ करें और मां चंद्रघंटा की आरती गाएं.

॥ प्रसाद वितरण: ॥

पूजा के बाद प्रसाद परिवारजनों और कन्याओं में वितरित करें.

॥ विवरण ॥

देवी पार्वती के विवाहित स्वरूप को देवी चन्द्रघण्टा के रूप में जाना जाता है । भगवान शिव से विवाह होने के पश्चात् देवी महागौरी ने अपने मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करना आरम्भ कर दिया, जिसके कारण देवी पार्वती को देवी चन्द्रघण्टा के नाम से जाना जाने लगा । मान्यताओं के अनुसार, देवी चन्द्रघण्टा शुक्र ग्रह को शासित करती हैं । देवी चन्द्रघण्टा बाघिन की सवारी करती हैं । देवी चन्द्रघण्टा को दस भुजाओं के साथ दर्शाया गया है । देवी चन्द्रघण्टा अपने चार बायें हाथों में त्रिशूल, गदा, तलवार तथा कमण्डलु धारण करती हैं तथा पाँचवाँ बायाँ हाथ वर मुद्रा में रखती हैं । वह अपने चार दाहिने हाथों में कमल पुष्प, तीर, धनुष तथा जप माला धारण करती हैं तथा पाँचवें दाहिने हाथ को अभय मुद्रा में रखती हैं । देवी पार्वती का यह रूप शान्तिपूर्ण एवं अपने भक्तों का कल्याण करने वाला है । मान्यतानुसार, उनके मस्तक पर विद्यमान चन्द्र-घण्टी की ध्वनि उनके भक्तों की समस्त प्रकार की शक्तियों से रक्षा करती हैं ।

॥ प्रिय पुष्प ॥

चमेली ॥

॥ मन्त्र ॥

ॐ देवी चन्द्रघंटायै नमः ॥

॥ मंत्र ॥

या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।।

॥ मुख्य बीज मंत्र ॥

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघण्टायै नम: ॥

॥ प्रार्थना ॥

पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता ।
प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता ॥

॥ स्तुति ॥

या देवी सर्वभूतेषु माँ चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥

॥ ध्यानम् ॥

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् ।
सिंहारूढा चन्द्रघण्टा यशस्विनीम् ॥

मणिपुर स्थिताम् तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम् ।
खङ्ग, गदा, त्रिशूल, चापशर, पद्म कमण्डलु माला वराभीतकराम् ॥

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम् ।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम ॥

प्रफुल्ल वन्दना बिबाधारा कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम् ।
कमनीयां लावण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम् ॥

॥ स्तोत्रम् ॥

आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम् ।
अणिमादि सिद्धिदात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम् ॥

चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टम् मन्त्र स्वरूपिणीम् ।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम् ॥

नानारूपधारिणी इच्छामयी ऐश्वर्यदायिनीम् ।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चन्द्रघण्टे प्रणमाम्यहम् ॥

॥ कवचम् ॥

रहस्यम् शृणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने ।
श्री चन्द्रघण्टास्य कवचम् सर्वसिद्धिदायकम् ॥

बिना न्यासम् बिना विनियोगम् बिना शापोध्दा बिना होमम् ।
स्नानम् शौचादि नास्ति श्रद्धामात्रेण सिद्धिदाम ॥

कुशिष्याम् कुटिलाय वञ्चकाय निन्दकाय च ।
न दातव्यम् न दातव्यम् न दातव्यम् कदाचितम् ॥

॥ आरती ॥

जय माँ चन्द्रघण्टा सुख धाम । पूर्ण कीजो मेरे काम ॥
चन्द्र समाज तू शीतल दाती । चन्द्र तेज किरणों में समाती ॥

मन की मालक मन भाती हो । चन्द्रघण्टा तुम वर दाती हो ॥
सुन्दर भाव को लाने वाली । हर संकट में बचाने वाली ॥

हर बुधवार को तुझे ध्याये । सन्मुख घी की ज्योत जलाये ॥
श्रद्दा सहित तो विनय सुनाये । मूर्ति चन्द्र आकार बनाये ॥

शीश झुका कहे मन की बाता । पूर्ण आस करो जगत दाता ॥
काँचीपुर स्थान तुम्हारा । कर्नाटिका में मान तुम्हारा ॥

नाम तेरा रटूँ महारानी । भक्त की रक्षा करो भवानी ॥

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