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माँ कूष्मांडा पूजा विधि | Maa Kushmanda puja Vidhi

॥ नवरात्रि के चौथे दिन (माँ कूष्मांडा की पूजा विधि) ॥
नवरात्रि के चौथे दिन देवी कूष्मांडा की पूजा-अर्चना की जाती है. इस विधि में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें, फिर देवी को गंगाजल या पंचामृत से स्नान कराएं और उन्हें कुमकुम, अक्षत, फूल, फल व मिठाई अर्पित करें.
॥ स्नान और वस्त्र धारण: ॥
ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें, विशेष रूप से पीले वस्त्र धारण करें.
॥ स्थान की शुद्धि: ॥
पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें.
॥ आसन ग्रहण: ॥
एक साफ आसन पर बैठ जाएं और देवी कूष्मांडा का ध्यान करें.
॥ स्नान और श्रृंगार: ॥
देवी कूष्मांडा को गंगाजल या पंचामृत से स्नान कराएं.
॥ अर्पण: ॥
देवी को कुमकुम, लाल चंदन, चुनरी, लाल और पीले फूल, फल और मिठाई अर्पित करें. पान, सुपारी और लौंग भी चढ़ा सकते हैं.
॥ भोग: ॥
देवी कूष्मांडा को दूध से बनी मिठाई या खीर का भोग लगाएं.
॥ प्रसाद ग्रहण: ॥
भोग लगाने के बाद उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करें.
॥ आरती और दान: ॥
अंत में देवी कूष्मांडा की आरती करें.
॥ प्रसाद वितरण: ॥
पूजा के बाद प्रसाद परिवारजनों और कन्याओं में वितरित करें.
॥ विवरण ॥
देवी सिद्धिदात्री का रूप धारण करने के पश्चात्, ब्रह्माण्ड को ऊर्जा प्रदान करने हेतु देवी पार्वती सूर्य मण्डल के मध्य निवास करने लगीं । अतः भगवान सूर्य देवी कूष्माण्डा द्वारा शासित होते हैं । इसके पश्चात् से ही देवी को कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है। कूष्माण्डा वह देवी हैं, जिनमें सूर्य के अन्दर निवास करने की शक्ति एवं क्षमता है । देवी माता की देह की कान्ति एवं तेज सूर्य के समान दैदीप्यमान है । देवी सिद्धिदात्री सिंही पर सवार हैं। देवी को अष्टभुजाधारी रूप में दर्शाया गया है । उनके दाहिने हाथों में कमण्डलु, धनुष, बाण एवं कमल तथा बायें हाथों में क्रमशः अमृत कलश, जप माला, गदा एवं चक्र सुशोभित हैं । देवी कूष्माण्डा की आठ भुजायें हैं, अतः उन्हें अष्टभुजा देवी के नाम से भी जाना जाता है । भक्तों की मान्यता है कि, सिद्धियाँ तथा निधियाँ प्रदान करने की समस्त शक्ति देवी माँ की जप माला में विद्यमान है । यह वर्णित है कि, देवी माता ने अपनी मधुर मुस्कान से सम्पूर्ण संसार की रचना की, जिसे संस्कृत में ब्रह्माण्ड कहा जाता है । देवी माँ को श्वेत कद्दू की बली अति प्रिय है, जिसे कुष्माण्डा के नाम से जाना जाता है । ब्रह्माण्ड तथा कूष्माण्ड से सम्बन्धित होने के कारण, देवी का यह रूप देवी कूष्माण्डा के नाम से लोकप्रिय हैं ।
॥ प्रिय पुष्प ॥
लाल रँग के पुष्प ॥
॥ मन्त्र ॥
ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः ॥
॥ मुख्य बीज मंत्र ॥
ऐं ह्रीं देव्यै नमः. ॥
॥ प्रार्थना ॥
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च ।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
॥ स्तुति ॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥
॥ ध्यानम् ॥
वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम् ।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम् ॥
भास्वर भानु निभाम् अनाहत स्थिताम् चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम् ।
कमण्डलु, चाप, बाण, पद्म, सुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम् ॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम् ।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल, मण्डिताम् ॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम् ।
कोमलाङ्गी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम् ॥
॥ स्तोत्रम् ॥
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम् ।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम् ॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम् ।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम् ॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहि दुःख शोक निवारिणीम् ।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम् ॥
॥ कवचम् ॥
हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम् ।
हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम् ॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा,
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम ।
दिग्विदिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजम् सर्वदावतु ॥
॥ आरती ॥
कूष्माण्डा जय जग सुखदानी । मुझ पर दया करो महारानी ॥
पिङ्गला ज्वालामुखी निराली । शाकम्बरी माँ भोली भाली ॥
लाखों नाम निराले तेरे । भक्त कई मतवाले तेरे ॥
भीमा पर्वत पर है डेरा । स्वीकारो प्रणाम ये मेरा ॥
सबकी सुनती हो जगदम्बे । सुख पहुँचाती हो माँ अम्बे ॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा । पूर्ण कर दो मेरी आशा ॥
माँ के मन में ममता भारी । क्यों ना सुनेगी अरज हमारी ॥
तेरे दर पर किया है डेरा । दूर करो माँ संकट मेरा ॥
मेरे कारज पूरे कर दो । मेरे तुम भण्डारे भर दो ॥
तेरा दास तुझे ही ध्याये । भक्त तेरे दर शीश झुकाये ॥
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