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माँ कात्यायनी पूजा विधि | Maa Katyayani Puja Vidhi

॥ नवरात्रि के छठे दिन (माँ स्कंदमाता की पूजा विधि) ॥
देवी कात्यायनी और चंद्रघंटा दोनों के लिए पूजा विधि एक समान है । पूजा के लिए सबसे पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें, फिर देवी की प्रतिमा स्थापित कर गंगाजल से शुद्ध करें । कलश स्थापना के बाद देवी मां को अक्षत, रोली, चंदन, फूल और चुनरी चढ़ाएं । उन्हें धूप-दीप दिखाएं, मंत्र जपें और भोग में शहद, दूध से बनी मिठाई और खीर अर्पित करें। अंत में दुर्गा चालीसा या आरती करें और प्रसाद वितरण करें ।
॥ स्नानादि और वस्त्र: ॥
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र पहनें.
॥ आसन और संकल्प: ॥
पूजा के लिए आसन पर बैठें और पूजन का संकल्प लें.
॥ प्रतिमा स्थापना: ॥
देवी कात्यायनी या चंद्रघंटा की प्रतिमा या फोटो चौकी पर स्थापित करें.
॥ शुद्धिकरण: ॥
प्रतिमा या चित्र को गंगाजल से शुद्ध करें.
॥ कलश स्थापना: ॥
कलश में जल भर कर चौकी पर रखें और कलश के ऊपर नारियल रखें
॥ पूजा सामग्री: ॥
देवी को अक्षत, लाल चंदन, चुनरी, लाल पीले फूल अर्पित करें.
॥ धूप-दीप: ॥
देवी को धूप और दीप दिखाएं.
॥ भोग: ॥
उन्हें शहद, दूध से बनी मिठाई, खीर और मीठा फल अर्पित करें.
॥ पाठ और मंत्र: ॥
दुर्गा चालीसा का पाठ करें और देवी के मंत्रों का जाप करें.
॥ आरती और प्रसाद: ॥
देवी की आरती करें और प्रसाद बांटें.
॥ विवरण ॥
देवी पार्वती ने महिषासुर नामक राक्षस का नाश करने हेतु देवी कात्यायनी का रूप धारण किया था । यह देवी पार्वती का सर्वाधिक उग्र रूप था । इस रूप में देवी पार्वती को योद्धा देवी के रूप में भी जाना जाता है । मान्यताओं के अनुसार, देवी कात्यायनी बृहस्पति ग्रह को शासित करती हैं। देवी कात्यायनी को विशाल दैवीय सिंह पर आरूढ़ एवं चतुर्भुज रूप में दर्शाया गया है । देवी कात्यायनी अपने बायें हाथों में कमल पुष्प तथा तलवार धारण करती हैं तथा अपने दाहिने हाथों को अभय मुद्रा एवं वरद मुद्रा में रखती हैं । हिन्दु धर्मग्रन्थों के अनुसार, कालान्तर में देवी पार्वती ने ऋषि कात्यायन की पुत्री के रूप अवतार धारण किया था। ऋषि कात्यायन की पुत्री होने के कारण देवी पार्वती के इस रूप को देवी कात्यायनी के नाम से जाना जाता है ।
॥ प्रिय पुष्प ॥
लाल रँग के पुष्प, विशेषतः गुलाब के पुष्प .
॥ मन्त्र ॥
ॐ देवी कात्यायन्यै नमः ॥
॥ बीज मंत्र ॥
ऐं श्रीं शक्तयै नम:॥
॥ प्रार्थना ॥
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना ।
कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी ॥
॥ स्तुति ॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥
॥ ध्यानम् ॥
वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम् ।
सिंहारूढा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्विनीम् ॥
स्वर्णवर्णा आज्ञाचक्र स्थिताम् षष्ठम दुर्गा त्रिनेत्राम् ।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि ॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालङ्कार भूषिताम् ।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम् ॥
प्रसन्नवदना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम् ।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम् ॥
॥ स्तोत्रम् ॥
कञ्चनाभां वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां ।
स्मेरमुखी शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोऽस्तुते ॥
पटाम्बर परिधानां नानालङ्कार भूषिताम् ।
सिंहस्थिताम् पद्महस्तां कात्यायनसुते नमोऽस्तुते ॥
परमानन्दमयी देवी परब्रह्म परमात्मा ।
परमशक्ति, परमभक्ति, कात्यायनसुते नमोऽस्तुते ॥
विश्वकर्ती, विश्वभर्ती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता ।
विश्वाचिन्ता, विश्वातीता कात्यायनसुते नमोऽस्तुते ॥
कां बीजा, कां जपानन्दकां बीज जप तोषिते ।
कां कां बीज जपदासक्ताकां कां सन्तुता ॥
कांकारहर्षिणीकां धनदाधनमासना ।
कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा ॥
कां कारिणी कां मन्त्रपूजिताकां बीज धारिणी ।
कां कीं कूंकै कः ठः छः स्वाहारूपिणी ॥
॥ कवचम् ॥
कात्यायनौमुख पातु कां स्वाहास्वरूपिणी ।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी ॥
कल्याणी हृदयम् पातु जया भगमालिनी ॥
॥ आरती ॥
जय जय अम्बे जय कात्यायनी । जय जग माता जग की महारानी ॥
बैजनाथ स्थान तुम्हारा । वहावर दाती नाम पुकारा ॥
कई नाम है कई धाम है । यह स्थान भी तो सुखधाम है ॥
हर मन्दिर में ज्योत तुम्हारी । कही योगेश्वरी महिमा न्यारी ॥
हर जगह उत्सव होते रहते । हर मन्दिर में भगत है कहते ॥
कत्यानी रक्षक काया की । ग्रन्थि काटे मोह माया की ॥
झूठे मोह से छुडाने वाली । अपना नाम जपाने वाली ॥
बृहस्पतिवार को पूजा करिये । ध्यान कात्यानी का धरिये ॥
हर संकट को दूर करेगी । भण्डारे भरपूर करेगी ॥
जो भी माँ को भक्त पुकारे । कात्यायनी सब कष्ट निवारे ॥
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