माँ स्कंदमाता पूजा विधि | Maa Skandamata Puja Vidhi

माँ स्कंदमाता पूजा विधि | Maa Skandamata Puja Vidhi

🙏 आरती संग्रह 🙏




माँ स्कंदमाता पूजा विधि | Maa Skandamata Puja Vidhi

माँ स्कंदमाता पूजा विधि | Maa Skandamata Puja Vidhi

॥ नवरात्रि के पांचवें दिन (माँ स्कंदमाता की पूजा विधि) ॥

पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा होती है । देवी स्कंदमाता और चंद्रघंटा की पूजा विधि में सुबह स्नान करना, पूजा स्थल को शुद्ध करना, चौकी पर पीला या लाल वस्त्र बिछाकर देवी की प्रतिमा स्थापित करना, पीले या लाल फूल व अन्य श्रृंगार सामग्री अर्पित करना शामिल है। स्कंदमाता की पूजा में पीले फूल, चंद्रघंटा की पूजा में लाल फूल व दूध से बनी मिठाई का भोग लगाते हैं। दोनों देवियों के विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है, दुर्गा चालीसा और दुर्गा आरती भी करते हैं।

॥ स्नान और शुद्धिकरण: ॥

सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें ।

॥ स्थापना: ॥

लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर मां स्कंदमाता की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें ।

॥ श्रृंगार: ॥

देवी को पीले फूल, पीले वस्त्र और श्रृंगार का सामान अर्पित करें ।

॥ भोग: ॥

स्कंदमाता को केले का भोग लगाना शुभ माना जाता है ।

॥ मंत्र जप: ॥

स्कंदमाता के मंत्रों का जाप करें और दुर्गा सप्तशती व दुर्गा चालीसा का पाठ करें ।

॥ आरती: ॥

मां की आरती उतारें और प्रसाद बांटे ।


॥ देवी चंद्रघंटा पूजा विधि ॥


॥ स्नान और शुद्धिकरण: ॥

सुबह स्नान कर पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।

॥ स्थापना: ॥

लकड़ी की चौकी पर देवी चंद्रघंटा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें ।

॥ श्रृंगार: ॥

देवी को सिंदूर, अक्षत, धूप, पुष्प और लाल फूल अर्पित करें ।

॥ भोग: ॥

मां चंद्रघंटा को दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं ।

॥ मंत्र जप: ॥

दुर्गा चालीसा का पाठ करें और देवी के मंत्रों का जाप करें ।

॥ जाप मंत्र: ॥

ओम देवी चंद्रघंटाय नमः ।

॥ स्तुति मंत्र : ॥

या देवी सर्वभूतेषु मां चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥

॥ आरती: ॥

मां की आरती गाएं और प्रसाद सभी में बांट दें।

॥ विवरण ॥

भगवान स्कन्द, जिन्हें भगवान कार्तिकेय के रूप में भी जाना जाता है, की माता बनने के उपरान्त से ही माता पार्वती समस्त लोकों में देवी स्कन्दमाता के नाम से विख्यात हो गयीं । मान्यताओं के अनुसार, बुद्ध ग्रह को देवी स्कन्दमाता द्वारा शासित किया जाता है । देवी स्कन्दमाता एक क्रूर सिंह पर आरूढ़ रहती हैं। उनकी गोद में बालक मुरुगन हैं । भगवान मुरुगन को कार्तिकेय तथा भगवान गणेश के भ्राता के रूप में भी जाना जाता है । देवी स्कन्दमाता को चतुर्भुज रूप में दर्शाया गया है । वह अपनी ऊपरी दोनों भुजाओं में कमल पुष्प धारण करती हैं । वह अपने दाहिने हाथ में से एक में बाल मुरुगन को लिये हुये हैं तथा दूसरे दाहिने हाथ को अभय मुद्रा में रखती हैं । वह कमल के पुष्प पर विराजमान रहती हैं, अतः देवी स्कन्दमाता को देवी पद्मासना भी कहा जाता है । देवी स्कन्दमाता शुभ्र वर्ण की हैं, जो उनके श्वेत वर्ण को प्रदर्शित करता है । जो भक्त देवी पार्वती के इस रूप का पूजन करते हैं, उन्हें भगवान कार्तिकेय की पूजा का लाभ प्राप्त होता है ।

॥ प्रिय पुष्प ॥

लाल रँग के पुष्प ॥

॥ मन्त्र ॥

ॐ देवी स्कन्दमात्रे नमः ॥

॥ प्रार्थना ॥

सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया ।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ॥

॥ स्तुति ॥

या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥

॥ ध्यानम् ॥

वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम् ।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्विनीम् ॥

धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पञ्चम दुर्गा त्रिनेत्राम् ।
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम् ॥

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम् ।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल धारिणीम् ॥

प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् पीन पयोधराम् ।
कमनीयां लावण्यां चारू त्रिवली नितम्बनीम् ॥

॥ स्तोत्रम् ॥

नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम् ।
समग्रतत्वसागरम् पारपारगहराम् ॥

शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम् ।
ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रदीप्ति भास्कराम् ॥

महेन्द्रकश्यपार्चितां सनत्कुमार संस्तुताम् ।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलाद्भुताम् ॥

अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम् ।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तितां विशेषतत्वमुचिताम् ॥

नानालङ्कार भूषिताम् मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम् ।
सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेदमार भूषणाम् ॥

सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्र वैरिघातिनीम्।
शुभां पुष्पमालिनीं सुवर्णकल्पशाखिनीम् ॥

तमोऽन्धकारयामिनीं शिवस्वभावकामिनीम् ।
सहस्रसूर्यराजिकां धनज्जयोग्रकारिकाम् ॥

सुशुध्द काल कन्दला सुभृडवृन्दमज्जुलाम् ।
प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरम् सतीम् ॥

स्वकर्मकारणे गतिं हरिप्रयाच पार्वतीम् ।
अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम् ॥

पुनः पुनर्जगद्धितां नमाम्यहम् सुरार्चिताम् ।
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवी पाहिमाम् ॥

॥ कवचम् ॥

ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मधरापरा ।
हृदयम् पातु सा देवी कार्तिकेययुता ॥

श्री ह्रीं हुं ऐं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा ।
सर्वाङ्ग में सदा पातु स्कन्दमाता पुत्रप्रदा ॥

वाणवाणामृते हुं फट् बीज समन्विता ।
उत्तरस्या तथाग्ने च वारुणे नैॠतेअवतु ॥

इन्द्राणी भैरवी चैवासिताङ्गी च संहारिणी ।
सर्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै ॥

॥ आरती ॥

जय तेरी हो स्कन्द माता । पाँचवाँ नाम तुम्हारा आता ॥
सबके मन की जानन हारी । जग जननी सबकी महतारी ॥

तेरी जोत जलाता रहूँ मैं । हरदम तुझे ध्याता रहूँ मै ॥
कई नामों से तुझे पुकारा । मुझे एक है तेरा सहारा ॥

कही पहाड़ों पर है डेरा । कई शहरों में तेरा बसेरा ॥
हर मन्दिर में तेरे नजारे । गुण गाये तेरे भक्त प्यारे ॥

भक्ति अपनी मुझे दिला दो । शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो ॥
इन्द्र आदि देवता मिल सारे । करे पुकार तुम्हारे द्वारे ॥

दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आये । तू ही खण्ड हाथ उठाये ॥
दासों को सदा बचाने आयी । भक्त की आस पुजाने आयी ॥

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